समीर की कटिंग चाय
शाम को 5:00 बजे काफी बार ऑफिस के पास समीर की टपरी पर कटिंग चाय पीने जाते हैं। ये कोई आम चाय नहीं हैं; इसका स्वाद और अपनापन कुछ अलग़ हैं। चाय पीते समय थोड़ी देर के लिए हम सब कुछ भूल जाते हैं । जैसे वो चाय मानो एक नयी उम्मीद दे देती। ऐसा नहीं है की समीर बहुत अच्छी चाय बनाता है या उसकी टपरी के कप गरम पानी से धोये जाते हैं। पर फिर भी यहाँ हर टाइप के, साइज के और क्लास के लोग आते है। यहाँ रुकते, चाय पीते और फिर भीड़ में कहीं खो जाते। हर रोज़ न जाने कितने लोग इस टपरी पर चाय पीने आते है। शायद यहाँ की चाय का असली स्वाद टपरी की चहल — पहल में है। जब लोगों को चाय पीते समय आपस में बातें करता देखता हूँ तो सोचता हूँ की ये टपरियां अपने में कितनी सारी कहानियाँ समेटे हुए हैं। पर अब शायद सब बदल जायेगा। एक छोटे से वायरस ने सब बदल दिया; हमारी सोच, समझ और दुनिया को देखने का नज़रिया। आज हम अपने घरों में बांध हैं। किसी को नहीं पता आगे क्यां होने वाला हैं। सब बस उम्मीद लगा के बैठे हैं। इन सबके बीच समीर अपनी टपरी बंद करके गांव चला गया हैं। पता नहीं उसे बस मिली या पैदल गया। कुछ खाया भी या नहीं। शहर और सड़के सब खाली